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क्षमा की असली परिभाषा है हृदय की पवित्रता,प्रेम,, दया , संवेदनशीलता जो हमे मनुष्य होने के नाते स्वाभाविक रूप से मिला है | पर समाज मे व्याप्त जटिलताओं की वजह से हम इसे खो देते हैं और हर व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखते हैं और ऐसे में अगर हम किसी संदेही व्यक्ति जैसे चोर,बदमाश,हिंसक धोखेबाज को उनके किए कृत्यों पर क्षमा कर देते हैं तो यह क्षमा कमजोरी कहलाती है | और बहुत जल्द ही आप यह देखेंगे कि जिसे आपने क्षमा किया था वो आपका शोषण करने लगेगा | जो व्यक्ति भीतर से सहनशील है, उदार प्रवृति का है ,जिसने यह सोच लिया कि उसका पतन किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं बल्कि ईश्वरीय इच्छा से हो रहा है , जिसने यह सोच लिया कि वह किसी के मारने से मरेगा नहीं , केवल देह-मुक्त होगा वही व्यक्ति सही अर्थों में अभय को उपलब्ध होता है , और सही अर्थों में वही व्यक्ति निर्मल मन से क्षमा कर पाता है | क्षमा एक बहुत बड़ा दान है , क्षमा करनेवाला व्यक्ति ईश्वर के बहुत करीब होता है ,थोड़े शब्दों में कहें तो इसकी परिभाषा होगी —” क्षमा बरखा सी बरसती है ,यह उंच-नीच,अमीर-गरीब,जात-पात नहीं देखता यह तो समान रूप से अपनी धारा में अविरल बहती है ” क्षमा भाव एक अनूठा आयाम है ,जब आप किसी की गलती पर उसे क्षमा करते हैं तो आप अपना मार्ग प्रशस्त करते हैं,आप ईश्वर के नजदीक होते हैं और सबसे अच्छी जो बात होती है,वो यह कि आप खुद के साथ न्याय करते हैं और भीतर से पवित्र बनते हैं |
संत कवि रहिमदास जी का बहुत ही प्रचलित दोहा जिसे मेरे ससुर जी हमेशा सुनाते थे —–
” क्षमा बड़न को चाहिये,छोटन को उत्पात |
का रहीम हरी का घटयो , जो भृगु मारी लात ||
अर्थात उदंडता करनेवाला हमेशा छोटा ही कहा जाता है और क्षमा करनेवाला ही बड़ बनता है | ऋषि भृगु ने भगवान की सहिष्णुता की परीक्षा लेने के लिए उनके वक्ष पर ज़ोर से लात मारी मगर क्षमाशील भगवान ने नम्रतापूर्वक उनसे ही पूछा –ऋषिवर,कहीं आपके पैर में चोट तो नहीं आई ? क्योंकि मेरा वक्षस्थल कठोर है और आपके पैर कोमल हैं | इस तरह भृगु जी ने क्रोध करके स्वयम को छोटा सिद्ध किया और क्षमा कर भगवान विष्णु श्रेष्ठ बन गए | आजकल तो लात मारने की भी जरूरत नहीं होती है, उसके लिए हमारी जुबान ही बहुत है | इंसान अपनी जुबान से ऐसे-ऐसे वज्र प्रहार करता है कि सामनेवाला व्यक्ति धराशायी हो जाता है | इसी संदर्भ में संत कवि रहीम जी का एक और दोहा —–
” रहिमन जिह्वा बावरी, कह गयी सरग-पताल |
आप कह भीतर गयी , जूती खात कपाल ||
इसी जुबान की वजह से संसार में बड़े-बड़े युद्ध हुये , कितने घर टूटे ,कितने परिवार बिखर गए क्योंकि जब आप किसी के प्रति कड़वा बोलते हैं तो उसका अन्तर्मन छलनी हो जाता है | शरीर का घाव तो समय से भर जाता है पर मन के घाव तो ताउम्र टीसता है अतः इसका सबसे बेहतर तरीका है —क्षमा मांग लेना,और क्षमा कर देना |
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