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‘आजादी के सही मायने ”

sangeeta singh bhavna
sangeeta singh bhavna
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हमारा देश आजाद हुआ 15 अगस्त 1947 को , जरा याद करिये उन लम्हों को जब इस देश की आम-अवाम ने आजादी की पहली साँस ली होगी | कैसा सुंदर कितना मनोरम रहा होगा खुली हवा में अपने अरमानों के पंख फ़ैलाने का सुखद एहसास| हर तरफ बस आजादी का जयघोष होगा | न जाने कितने बरसों से ब्रिटिश सल्तनत की गुलामी को झेलते हुये आजादी का जो सपना हम देख रहे थे उसका अचानक सच हो जाना कितना आह्लादित कर देने वाला होगा | हमें अपने अनुसार सपने देखने की एवं सपनों का संसार रचने को हम पूर्णतया सवतंत्र हो चुके थे | हम गुलामी के जंजीरों से मुक्त हो चुके थे |
आज देश 68वें साल की आजादी मनाने जा रहा है , ऐसे में इतने वर्षों बाद एक सवाल हमारे जेहन में बार-बार उठता है कि क्या इतने सालों बाद हम वाकई स्वतंत्र हैं ………? क्या हमारे सपनों की दुनिया पूरी तरह से साकार हो पाई है …..? ऐसे असंख्य सवाल हैं जो नित-प्रतिदिन हमारे जेहन में उथल पुथल मचाते रहते हैं | इस आजादी को क्या हम समझ पाए हैं भला…..! कितनी कुरबानियों के बाद मिली आजादी का यही सपना था हमारे देश के वीरों का……? क्या हम एक स्वस्थ एवं सुदृढ़ भारत की रचना कर पाये हैं …….! हम पूर्णरूप से यह भी नहीं कह सकते कि हम आजाद नहीं हैं , हमारा देश आगे नहीं बढ़ा है , हमने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की गरिमा को प्राप्त किया है | विविध धर्म एवं जाती समुदाय के लोग अपने-अपने तरीके से सहज जिन्दगी जी रहे हैं , यह एक उपलब्धि ही है | उद्योग -धंधे ,शिक्षा प्रणाली सभी क्षेत्रों में हमने इजाफा ही किया है , यह एक स्वतंत्र भारत की एवं भारत के साकार होते सपनों की ही एक झलक है | पर उन सपनों को जो हमारे वीर पुरुषों ने देखे थे , उसमें अभी कुछ रंग भरने बाकी हैं | देश अभी भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ा है , फिर चाहे वो मानसिक गुलामी हो या फिर शारीरिक | देश की स्थिति अभी भी खस्ता हाल है …………जहाँ महिलाओं को देवी की संज्ञा दी जाती है वहीँ उनकी सुरक्षा दिनों-दिन एक चुनौती बनती जा रही है | आज भी सैंकड़ों बहु – बेटियां प्रतिदिन जलाई जा रही हैं , आज न जाने कितनी ही अजन्मी कन्याओं को दफनाया जा रहा है , कितनी ही बेटियां समाज के उन दरिंदों की दरिंदगी की भेंट चढ़ रही हैं ………..तो क्या स्वतंत्र भारत की ऐसी घिनौनी आजादी की हम कामना किये थे जिसमें हर पल एक असुरक्षा विद्यमान रहती है | देश अभी भी भ्रष्टाचार ,महंगाई ,लुट-पाट ,चोरी-डकैती आदि संकीर्णताओं से घिरा हुआ है ,तो क्या हमने ऐसे स्वतंत्र भारत की बुलंद तस्वीर की कामना की थी , क्या हमने ऐसी आजादी के सपने देखे थे,
जहाँ सपने गिरवी हैं और आम-जन मौन तमाशा देख रहा है | सपने तो तब सच हो जब हम कहीं भी निर्भीक विचरण कर सकें, जहाँ सिर्फ अपनी आजादी ही नहीं वरन अपने आस-पास के लोगों की भी आजादी निहित हो ,हर व्यक्ति खुली हवा में साँस ले, कोई भी गरीब न हो ,हर व्यक्ति के पास रोजगार हो ,देश का कोई भी बच्चा कुपोषित ना हो जहाँ सबके लिये एक से कानून हों ……..| प्रकृति की विनाश लीला का कोई प्रसंग ना हो चारों तरफ हरा-भरा जंगल हो और हम प्रकृति और एक सुदृढ़ देश की उस मनोरम छटा का आनंद स्वतंत्र रुप से देश के एक मूल नागरिक के तौर पर उठाते रहें | मेरे
नजर में एक स्वतंत्र भारत की ऐसी ही छवि दिखती है , ऐसे ही सपनों की आजादी की हम कल्पना करते हैं , जहाँ बस चरों तरफ आह्लाद हो , पंक्षियों का मधुर गान हो,जहाँ नदियाँ स्वच्छ कल-कल करती हुई बहती रहे और हमारा हिमालय प्रहरी की भांति सीना ताने सदैव सुरक्षा में अडिग रहे | जरा
सोचिये अगर ऐसा
हो तो क्या वो कहावत सही चरितार्थ होती हुई नहीं लगेगी ……”अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है ”

संगीता सिंह ‘भावना’
वाराणसी

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