Menu
blogid : 23046 postid : 1265094

”वृद्धावस्था का अकेलापन”

sangeeta singh bhavna
sangeeta singh bhavna
  • 16 Posts
  • 46 Comments

हर माँ -बाप अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं ,यह सोचकर कि एक दिन बेटा कमाने लगेगा तो सारे सपने पूरे हो जायेंगे | कभी-कभी तो यह भी देखा गया है कि आभिभावक अपने एकलौते संतान को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए अपने कलेजे पर पत्थर रखकर विदेश भेज देते हैं पर वहां जाने के बाद सैलरी पैकेज और लाइफस्टाइल देखकर बच्चे अपना मन बदल लेते हैं और वे वहीँ के होकर रह जाते हैं | भौतिक सुविधाओं की चकाचौंध में बच्चे यह भी भूल जाते हैं कि उनके मातापिता किस हाल में हैं | बच्चे अपनी खुशियों की खातिर माँ के वात्सल्य प्रेम से समझौता कर लेता है तथा बदले में हर महीने अच्छी रकम भेजता है पर क्या पैसे से अपनापन ख़रीदा जाता है ……??
हर माँ बाप का सपना होता है अपने बच्चों की गृहस्थी बसते हुए देखना एवं उनके साथ अपना बाकी का समय बिताना ,पर बच्चे कहकर तो जाते हैं कि लौट आऊंगा या आपसबों को भी बुला लूँगा पर ऐसा होता नहीं है | आज इसी अकेलेपन से बचने के लिए अधिकतर बुजुर्ग दम्पति ओल्ड एज होम को अपना ठिकाना बना ले रहे हैं | उनके पास गाड़ी ,बंगला ,नौकर -चाकर सब हैं, नहीं हैं तो बस उनके अपने जिसकी उन्हें शायद सबसे ज्यादा जरुरत है | गंभीर बात यह है कि इस स्थिति से सबको गुजरना है | यह किसी दूसरे घर की कहानी नहीं , बल्कि घर घर की कहानी है | कोई भी इस ग़लतफ़हमी में नहीं रह सकता कि उसे इस समस्या को नहीं झेलना होगा | वृद्धों की समस्या का एक हल है बहुत से वृद्धों को एक साथ रहने की कोशिश करना | आयु हो जाने के पर लोगों को चाहिए कि वे ऐसे मकानों में शिफ्ट करें जिन में बहुत से वृद्ध रह रहे हों | ये वृद्धाश्रम न हो,ये वृद्धों की हाउसिंग सोसाइटीयां हों जिसमें वृद्ध एकदूसरे की सहायता कर सकें और एकदूसरे को अपने बच्चों से बचा भी सकें, और मिला भी सकें | आज हमारे समाज की इस भयानक रोग से हर माँ-बाप भयभीत है , उसे अपना आनेवाला कल साफ़ दिखाई दे रहा है जिस वजह से उसका वर्तमान भी भयभीत सा गुजर रहा है | जीवन के इस पड़ाव पर वह खुद को टूटा एवं बिखरा हुआ महसूस कर रहा है | जिस उम्र में उसे अपनों के सहारे की जरुरत महसूस होती है ,जब उन्हें बच्चों का साथ संजीवनी सा काम करता है उसी समय वे नितांत अकेले रह जाते हैं | असुरक्षा की भावना उनके अंतर्मन में इस कदर व्याप्त है कि उन्हें अपना जीवन व्यर्थ सा लगने लगा है | आज बुजुर्गों की हालत को देखकर मुझे एक कविता याद आ रही है ………..
बदलते दौर के कई मंजर देखे ,
मेरी आँखों ने कई समंदर देखे ….
सैलाब रोके न रुका है कभी ,
मैंने किनारों पर ढहते रेत के कई महल देखे ….
वक्त दौड़ रहा हा,भाग रहें हैं सभी ,
न बंदिशें बची है ,और न ही कोई चाहतें ….
हसरतों और ख्वाहिशों की इस होड़ में ,
मैंने झीलों में डूबते कई कँवल देखे …….

संगीता सिंह ‘भावना’
वाराणसी
ई.मेल पता …..singhsangeeta558@gmail.com

संगीता सिंह ”भावना” ( सह -संपादिका ‘करुणावती साहित्य धारा ‘ त्रैमासिक
एकल काव्य संग्रह ”मेरे हमदम” प्रकाशित
w /o – श्री जय प्रकाश सिंह ( अधिवक्ता)
sh 5 /20 AL लक्ष्मनपुर लेन –2
लक्ष्मनपुर , शिवपुर वाराणसी
पिन कोड-221002
फोन न . 9415810055
मेल पता –singhsangeeta558@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh